खरगोश और कछुआ
एक समय की बात है जब एक खरगोश और एक कछुआ अपने आप को दोस्त मानते थे। दोनों की आपस में बहुत दोस्ती थी और वे साथ में बहुत मजे करते थे।
एक दिन खरगोश और कछुआ ने एक दौड़ लगाई। खरगोश बहुत तेज था और कछुआ उससे कम तेज था। खरगोश ने कछुआ से कहा, “तुम इतने धीमे हो, मुझसे दौड़ में कैसे हार सकते हो?” कछुआ ने खरगोश से कहा, “धीमे होने का मतलब हारने से नहीं होता है, मैं तो अभी भी दौड़ में हूँ ना।”
खरगोश ने फिर कछुआ से चुनौती दी और कहा, “अब देखो कौन जीतता है।” फिर वे दौड़ने लगे। खरगोश बहुत तेज दौड़ रहा था, लेकिन उसे एक समुद्री झील पार करना था। वह झील के किनारे से उसे पार कर गया और उसने सोचा कि कछुआ अभी तक आ नहीं पाया होगा। खरगोश ने थोड़ी देर बाद घबराते हुए देखा कि कछुआ उसके पीछे आ रहा है।
खरगोश बहुत चौंक गया क्योंकि उसने सोचा था कि कछुआ उसे कभी नहीं पर भागते हुए देखा तो वह देखा कि कछुआ बहुत ही धीमे धीमे दौड़ रहा था। खरगोश को यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा हो सकता है लेकिन इससे ज्यादा खरगोश उसकी तेज़ी से अपनी शान बिगड़ते नहीं देख सकता था।
आखिरकार खरगोश को झांक कर देखने पर उसे ये पता चला कि कछुआ एक नाले के पास से जा रहा था, जो झील के उसी तरफ था। खरगोश ने तुरंत उस नाले के बाहर जाकर कछुआ का इंतजार करने लगा।
कुछ समय बाद कछुआ नाले के पास पहुँचा। खरगोश ने कछुआ को देखते ही उससे माफ़ी मांग ली। कछुआ ने खरगोश की माफी स्वीकार कर दी और उनकी दोस्ती फिर से वैसी हो गई जैसी पहले थी। उन्होंने दोनों मिलकर यह निर्णय लिया कि तेजी से दौड़ने की जगह आपस में मिलकर काम करने से अच्छा होगा।
यह घटना उन्हें समझ गई कि दूसरों के द्वारा उनकी गलतियों को समझना चाहिए और उससे सीख लेना चाहिए। इससे उन्हें एक दूसरे के साथ अच्छा मेल बनाने की सीख मिली। इस बात से वे बेहद खुश थे कि उन्होंने अपनी गलती मान ली और उन्हें अब कछुआ उनसे दौड़ने की तेजी में पीछे नहीं छोड़ता था।
दोनों ने अब एक साथ काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने समझ लिया था कि सफलता के लिए एक दूसरे के सहायता की आवश्यकता होती है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए वे संयुक्त रूप से काम करने लगे।
उन्होंने एक दिन सोचा कि वे मिलकर एक बड़ा पेड़ लगाएंगे। वे दोनों मिलकर एक पेड़ लगाने लगे। खरगोश ने पेड़ के नीचे खोदा और कछुआ ने जड़ से बाँध दिया। उन्होंने मिलकर उस पेड़ को सौंप दिया।
इस तरह दोनों ने सफलता पाई और उन्हें एक दूसरे की जरूरत का अहसास हो गया। वे दोनों दोस्ती की मिसाल बन गए थे।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि एक सफल जीवन के लिए सहयोग बहुत जरूरी होता है। हमें अक्सर यह भूल जाते हैं कि हम सफलता को अकेले नहीं पा सकते। हमें दूसरों की जरूरत होती है जो हमें सहयोग देते हुए हमारे साथ चलते हैं।
इसके अलावा, हमें यह भी सीख मिलती है कि हमें दूसरों के द्वारा हमारी गलतियों को समझना चाहिए। हमें इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि हम भी गलत हो सकते हैं और हमें उन गलतियों से सीख लेना चाहिए। इससे हमें अधिक सक्षम बनने में मदद मिलती है और हम जल्दी से सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
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